मातृभाषा
आजकल में ही कहीं पढ़ा था- क्यों हम हिन्दी में कुछ लिखने से इतना कतराते हैं? क्यों एक विदेशी भाषा इतनी आसन लगती है? क्यों जब हम अपनी भाषा में लिखने की कोशिश किसी करते हैं, तो शब्द ही नही मिलते? ऐसा नही है की हमने हिन्दी पढ़ी नही. पढ़ी है, अच्छे से. और उस ज़माने में हिन्दी अच्छे से आती भी थी. फिर अब क्या हो गया? कोई जवाब है इसका?
4 comments:
I don't believe you saying it? I don't think any of this statement is applicable on you ...
it is true ritesh..
I agree that I havnt lost it completely.. But still.. Words dont come easily when m writing in my mother tongue.
The flow is absent.
स्वागत है आपका अपनी मातृभाषा में लिखने के लिए ।
आपके प्रश्न पर मेरा सीधा सपाट जवाब यह है कि लोग घर की बीबी को छोडकर पडोसी की बीबी पर नजरें सुखन करते हैं । यही है हिन्दी को निकृष्ट समझने की प्रवृत्ति । आपके मन में यह प्रश्न आन्दोलित होती रहे, हमारी हिन्दी का विकास ऐसे ही होगा, युवा दिलों में धडकन की तरह ......
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।
Actually the same thing happen with me when I write in English ... I don't know who of us should be more unhappy ...
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